रूपए का पेड़
रूपए का पेड़
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जब सिक्के हमने बोये थे
फसल हो जाये अच्छी हमारी
नित्य पानी उसे पिलाए थे
रोज उसके हम निहारते
छोटा सा अंकुर हम जब पाते
तो घर में खूब सब बताये थे
एक रात मैंने सपना देखा
मेरा रुपए का पेड़ बड़ा हो आया
हरे नोटों की पत्तियाँ से वह लहलहाया
मूंगे, चांदी के फूलों से वह चमकाया
सोने के फल भी उसपर हमने खूब पाया
तेज हवा के झोंके से पत्तियाँ जो गिर जाती
ना जाने कितनी बाल्टियां झड़े नोटों से भर जाती।