ग़ज़ल अब हमें दिल लगाना नहीं है
ग़ज़ल अब हमें दिल लगाना नहीं है
अब हमें दिल लगाना नहीं है
दिल की बातों में आना नहीं है
मकसदों के तलबगार सारे
प्यार का अब जमाना नहीं है
जिस्म की भूख रहती सभी को
अब यहाँ दिल दीवाना नहीं है
हुस्न बाले गगन के परिन्दे
उनका कोई ठिकाना नहीं है
तुम दिया हो यहाँ रौशनी दो
अब तुझे घर जलाना नहीं है
ख्वाब टूटे मेरे कांच जैसे
ख्वाब कोई दिखाना नहीं है
हाथ में अब सभी के नमक है
ज़ख़्म सबको दिखाना नहीं है
जो नहीं जानते दर्द दिल को
शेर उनको सुनाना नहीं है
ये धरम अब मुहब्बत न करना
खुद को यूँ आजमाना नहीं है।