"....कर्म...."
"....कर्म...."
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है हर इंसान शहरयार अपने जहाँ का,
हो गुरूर अगर शक्सियत में तो रहा कहाँ का।
है सितमगर तो मेरी बर्दाश्त की हद न देख,
तेरे हर गुनाह का मेरा खुदा रखेगा लेख।
याद रख तेरी हर खता को वो फिर दोहरायगा,
ये कर्म है तुझ तक लौटकर आएगा,
बस किरदार बदल जाएगा
बस किरदार बदल जाएगा।