बेटियां
बेटियां
बोलती कहाँ है चहकती है बेटियां
चिड़ियों की तरह ही होती है बेटियां....
कानो में घोलती ही रस ही जैसे...
मीठी सी आवाज में जब बुलाती है बेटियां...
सीखती है तुमसे ही फैलाना पँख
फिर बनाने को नीड़ खुदका उड़ जाती है बेटियां...
अरे माँ तुम्हे सजना भी नहीं आता
कह कर तुम्हे सजाती खुद के हाथो..
अरे कितना बोलती हो " सुनकर भी
कहाँ चुप होती बेटियां...
चली जाती जब हो कर विदा
बहुत याद आती है बेटियां...
उनकी चहचहाहट से गूंजा करता था जो घर
सूना उसे जैसे कर जाती बेटियां...।