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Krishna Sinha

Inspirational

4  

Krishna Sinha

Inspirational

राष्ट्र की खातिर

राष्ट्र की खातिर

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राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ

नहीं हूँ योद्धा, नहीं मैं सैनिक

जो जा सीमा पर बन्दूक चलाऊं  

मैं हूँ कवयित्री, राष्ट्र सन्देश की खातिर अपनी कलम चलाती हूँ  ......


नाज़ है मुझको, अस्त्र पर अपने,

जो अल्फाज़ो मे जान फूँक दे,

भावनाओं मे ला दे उफान तत्क्षण,

भुजाओं क़ो जो फड़का दे,

अपने कर्तव्य का राष्ट्र सेवा हित,

मैं हर पल स्मरण कराती हूँ.....

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ...........


मैं चाहती हूँ लिखूँ शौर्य की गाथा,

गौरवमय इतिहास बांचना चाहती हूँ,

ना भूले देशवासी, शहीदों का पराक्रम,

मैं उनका हर किस्सा लिखना चाहती हूँ...

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ............


आजादी अंग्रेजो से तो मिली हमें है,

पर ना जाने, मानसिकता क्यूँ गुलाम हुई,

पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण,

अपनी ही विरासत की अनदेखी हुई,

मैं थाम आपका हाथ अभी,

संस्कारो की राह दिखाना चाहती हूँ

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ.........


अन्याय का कर सकू विरोध मैं,

इतनी ताकत हे ईश, मेरी कलम क़ो देना,

हर कमज़ोर की मैं आवाज़ बनना चाहती हूँ....

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ.....


ना अभिलाषा की बस अखबारों मे,

छपकार मैं रह जाऊं,

ना अभिलाषा की बस पाउँ सम्मान,

मंचों की शोभा मात्र ही रह जाऊं..

मेरे शब्द सुन,एक बच्चा भी हो जाये संस्कारी,

मैं ऐसे अर्थो की खातिर,

अपनी कलम चलाती हूँ,

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ........


नेता सुभाष से हो,

आजाद से योद्धा,

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु

के गले का हो चाहे फांसी का फंदा,

मैं उनके अदम्य शौर्य क़ो

कोटिशः प्रणाम करना चाहती हूँ,

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ......


मेरा अर्थ, मेरा जीवन, मेरी शिक्षा, मेरी सम्पदा,

गर इक प्राणी का भी जीवन खुश करदे,

तो मैं सर्वस्व लुटाना चाहती हूँ

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ.......


गर मेरे कलम की स्याही,

भामाशाहो क़ो प्रेरित कर दे,

गरीब असहायो की सेवा क़ो,

तत्पर कर दें, साथ जोड़ दें,

तो मैं निस दिन, बिना रुके,

ऐसी कविता लिखना चाहती हूँ

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ........


( अंतिम बंध प्रकृति क़ो समर्पित )

इस प्रकृति ने, मुझे दिया बहुत कुछ,

निर्मलता, बहाव, रौशनी, धुप का टुकड़ा...

मैं बूँद हूँ, ये गहरा सागर विस्तृत सा,

वृक्ष रोपकर,और सबको ये कह कर,

बस थोड़ा सा, हाँ थोड़ा सा क़र्ज़ चुकाना चाहती हूँ

राष्ट्र जागरण के खातिर मैं अपनी कलम उठाती हूँ।


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