वो नन्ही पीड़िता
वो नन्ही पीड़िता
मन विचलित है, उद्विग्न बहुत..
है छिन्न भिन्न सी मानवता...
नन्ही सी बच्ची, कोमल सी वय..
वो पांच वर्ष की पीड़िता...
हम कुरेद कुरेद कर पूछे उससे,
क्या हुआ था उस दिन
बेटा सच सच बता...
वो सहमी सहमी, वो डरी डरी..
ढूंढे उस "लोग " को यहाँ वहाँ
वो कांप रही, वो मचल रही..
सुनी आँखों से देखे निज माँ...
मौन में उसके थे प्रश्न छिपे...
"माँ हुई थी क्या मुझसे,
उस रोज खता...
तूने ही कहा था, माचिस ले आ..
लगी भूख भाई को जा दूध ले आ..
घर दुकान की थोड़ी ही तो दूरी थी..
मैं पहुंची भी वहां, की खरीदारी पूरी थी...
सयानी तेरी बेटी हूँ माँ..
बचे पैसे नहीं खर्चे,
न ही मैंने चॉकलेट खायी माँ...
मैं तो जल्दी घर आ ही रही थी...
पीछे से उसने पुकारा माँ...
मैं करती मना, उससे पहले
वो गोद में मुझको ले भागा..
मैं रोती रही, भैया भूखा है..
पर वो कुछ ज्यादा भूखा था माँ...
फिर उसने मुझे कुचला रौंदा .
और खून में लथ पथ छोड़ गया..
मैं जोर जोर से रोई थी..
वो डर कर झाड़ी से भाग गया...
अब तू ही बता, मैं क्या करती..
मैं छोटी थी, वो " लोग " बड़ा
पर उस दिन से ना चैन से सोई हूँ
जगी हर रात, दर्द से रोई हूँ...
फिर सब क्यों मुझे बहलाते है..
पूछते वही क्यों बाते है...
मैं उससे बहुत ही डरती हूँ
उसे सामने क्यों मेरे लाते है... "
उस बच्ची का दर्द क्या तुमसे कहूँ..
क्या माँ की पीड़ा बतलाऊँ..
वो फ़ाइल देख
जज साहब को कहती..
ये ही फोटू इसका, ये गन्दा है..
आप मारो इसे, फांसी दे दो,
इसने ही किया मुझे नंगा है....
पर कैसी विडम्बना कैसी लाचारी...
मुल्ज़िम को बचाने भी खड़ी एक नारी
वो पूछे नन्ही से कई सवाल..
वो डटी रही, बतलाती रही
फिर गुस्से में उसने भरी हुंकार..
हाँ, यही था वो, ये दैत्याकार..
जो मेरे ऊपर बैठ गया..
दर्द दिया था जिसने मुझे अपार...
उसके इतना कहने भर से..
जीत चेहरे पर मेरे उभर आयी...
इतनी पीड़ा सहकर भी देखो डरी नहीं वो कल की जाई....
उम्मीद है न्याय कुछ पायेगी..
सजा मुल्ज़िम को मिल जाएगी..
पर सोच रही हूँ मैं अब भी...
कब तक कलियाँ रौंदी जाएगी?
विकृत वासना कब तक होंगी पोषित?
बच्चियां सुरक्षित रह पाएंगी...
आज कोर्ट में पांच साल की छोटी सी बच्ची के statement रिकॉर्ड किये... उसकी पीड़ा, उसकी सच्ची कहानी को कुछ शब्द दिए है पर जानती हूँ उसकी पीड़ा पर मलहम लगाने में मैं सक्षम नहीं...
वो अंगुलि थाम मेरी घूमती रही.. ओर उसकी मासूमियत देख मैं मन ही मन रोती रही.... मुल्ज़िम को वो "लोग " कह कर ही बुला रही थी, सो मैंने उसी शब्द का ही प्रयोग उसके लिए किया है..
आज कविता में त्रुटिया हो सकती है... पर इस नवरात्रमाँ से इतना आशीर्वाद चाहूंगी उसे जीवन में अब हर ख़ुशी मिले.. मुझसे उस नन्ही के हित जो बन पड़ेगा, करने की कोशिश करुँगी... वो सांवली सी बड़ी बड़ी आँखों वाली नन्ही सूरत हमेशा मेरे जेहन में रहेगी... माँ की उस पर कृपा रहे...