हम रेगिस्तान रह गए
हम रेगिस्तान रह गए
मेरे सच्चे प्रयास
तुम्हारी झूठी प्रतिष्ठा से कमतर रह गए,
तुम्हारे वे अपने,
जिन्होंने अपना ना समझा कभी तुम्हे,
फिर भी उनके आगे
हम ही गैर रह गए,
तुम जानते हो
तुम्हारी खुशी से
खुश नही है वो
और तुम हमें ही
अपनी खुशी का
दुश्मन कह गए,
जिंदगी भर का कह कर
हाथ थामा था कभी,
तुम तो एक ठोकर
से पीछे हट गए
जो हमसे पहले ही
हासिल था तुम्हे,
तुम फिर उस कुनबे
में हो गए शामिल,
ये भी ना देखा
हम कितने
खाली रह गए
फकत उजली धूप
ही तो चाही थी तुमसे हमने,
तुमने ऐसी दी सज़ा
की बस पानी पानी रह गए
अब भी लौट आओ
प्रेम की बारिश लेकर,
की सूख गया
प्रीत का जर्रा जर्रा
हम महज रेगिस्तान रह गए।