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Paramita Sarangi

Drama

4.7  

Paramita Sarangi

Drama

अनकही

अनकही

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वहाँ दीवारोँ पर

कुछ ना कुछ लिखा था

पसंद नापसंद करने को

नहीं था विकल्प वहाँ

अवसादों से घिरा

यह उदास शहर

किए जा रहा था समझौता


उसकी नीरव भाषा को

पढ़ नहीं सकती थी मैं

और वह घोषणा किए जा रहा था

शब्दों की मृत्यु की


ऐसी कोई बात नहीं

जो पहले से बताई नहीं गई

क्या सच में

शब्दों की अब

कोई आवश्यकता नहीं

इसलिए शायद इतना

ख़ामोश था यह शहर


अब किसी बगीचे से तोड़ूंगी

शब्दों को रखूंगी

सहेजकर अदिति की अंजुरी में,


मैं कर रही हूं पलायन

एक अन्य बगीचे की ओर

यहां तो लटक रहें हैं

शब्दों के शव।


घोड़े की लगाम खींच कर

देखा ऊपर आकाश में

उड़ रही थी शब्दों की खाल

और यह शहर

डूब रहा था

एक शुष्क

शब्दकोश की अंदर।



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