ख़ुश है
ख़ुश है
पलकों के किनारे भिगा कर खुश हैं
सितमगर मेरा दिल जला कर खुश हैं
पागल हुं शायद मगर फिर भी खुश हुं
अगर मेरे अपने मुझे रुला कर खुश हैं
किसी से नहीं तो खुद से वफ़ा करना
मुझसे बेवफाई करके जो खुश हैं
परदों में छुपे है उनके चेहरे बडे़ घिनौने
जो लोग अच्छाई का ढोंग करके खुश हैं
सबको पता है खुदा देख रहा है सब
फिर क्यों लोग साज़िशें हज़ार करके खुश हैं
जिसका इलाज नहीं मिलता ज़माने में
हम मुहब्बत का एसा रोग लगा कर खुश हैं
वह ज़हर जो पल में मिटा देता है हसती
हम यादों का एसा ज़हर पी कर खुश हैं
उसकी जफा से ज्यादा खुद पे हैरान हूँ
कैसे मेरा दिल वफ़ा निभा के खुश हैं
ख्वाब देखना भी हिम्मत वालों का शौक है
वह जो परछाइयों पीछा करके खुश है।