STORYMIRROR

Syeda Noorjahan

Abstract Drama Classics

4  

Syeda Noorjahan

Abstract Drama Classics

ख़ुश है

ख़ुश है

1 min
631

पलकों के किनारे भिगा कर खुश हैं

सितमगर मेरा दिल जला कर खुश हैं


पागल हुं शायद मगर फिर भी खुश हुं

अगर मेरे अपने मुझे रुला कर खुश हैं


किसी से नहीं तो खुद से वफ़ा करना

मुझसे बेवफाई करके जो खुश हैं


परदों में छुपे है उनके चेहरे बडे़ घिनौने

जो लोग अच्छाई का ढोंग करके खुश हैं


सबको पता है खुदा देख रहा है सब

फिर क्यों लोग साज़िशें हज़ार करके खुश हैं


जिसका इलाज नहीं मिलता ज़माने में

हम मुहब्बत का एसा रोग लगा कर खुश हैं


वह ज़हर जो पल में मिटा देता है हसती

हम यादों का एसा ज़हर पी कर खुश हैं


उसकी जफा से ज्यादा खुद पे हैरान हूँ

कैसे मेरा दिल वफ़ा निभा के खुश हैं


ख्वाब देखना भी हिम्मत वालों का शौक है

वह जो परछाइयों पीछा करके खुश है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract