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Syeda Noorjahan

Drama Tragedy

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Syeda Noorjahan

Drama Tragedy

नज़र नहीं आती

नज़र नहीं आती

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ज़माने में औरत की मुहब्बत का है चर्चा

मगर ज़माने को औरत ही वफ़ादार नज़र नहीं आती

टीस उठती है जैसे कुछ टूट रहा है

मगर कहीं कोई दरार नज़र नहीं आती

यादों के कांटे राहों में नज़र तो आते हैं

मगर इस राह से फरार की कोई राह नज़र नहीं आती

सरगोशी सी सुनाई तो देती है अक्सर

मगर सुरत कोई उस पार नज़र नहीं आती

उनके लहजे में परवाह तो होती है मेरे लिए

मगर क्यों कोई परवाह नज़र नहीं आती

पीछे भंवर हैं और किनारे भी करीब हैं

मगर पार करने को दरिया पतवार नज़र नहीं आती

चीर देती है जो इनसान को लफ़्ज़ों की ऐसी तलवार

हैरत है कभी आर पार नज़र नहीं आती

फूल पकड़े तो हाथ लहूलुहान हो गए

जाने कहाँ छुपी है ख़ार नज़र नहीं आती

यादों से जुड़ जाएं जो चीज़ें एक बार

बेकार हो कर भी बेकार नज़र नहीं आती

आज़ाद भी हैं सब और कैद भी हैं खुद में

किसी को अकेलेपन की वह दीवार नज़र नहीं आती


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