क़िस्मत
क़िस्मत
1 min
497
मिला कुछ नहीं किसी की सलतनत में
रहा अकेलापन ही मेरी विरासत में
लुटा के देखे हैं मैंने अपनों पर
अपना आप भी लुट गया मुहब्बत में
मेरे चहरे का चर्चा रहा हर जगह
किसी की दिलचस्पी नहीं थी सीरत में
किसी सोच का कोई कोना मैला न हो
ऐसी आच्छाई नहीं मिलती फितरत में
सराब था शायद हकिकत तो न होगी
धोखा होता है अक्सर मुहब्बत में
युंही नहीं मिलती नाकामी ज़िन्दगी में
खोट होती है कहीं न कहीं निय्यत में
खतम हो जाएगी ज़िन्दगी बुलबुले की तरह
कुछ भी नहीं रखा है माल और दौलत में
अगर सफर कठिन है तो यकीन मानो रौशन
मन्ज़िल भी बेहतरीन होगी किसमत में.
