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Syeda Noorjahan

Abstract

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Syeda Noorjahan

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अधुरा सा चांद

अधुरा सा चांद

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अंधेरी रात है और अधूरा सा चांद

कभी देखा पूरा मगर अधूरा सा चांद


ज़मीन पर हम रह गए अधूरे तेरे बिन

और आसमान पर रह गया अधूरा सा चांद


तुम मुकम्मल हो अपनी धूप छांव में

मुकम्मल अंधेरे में है अधूरा सा चांद


टुटे फुटे अल्फाज़ जोड़ कर कुछ लिखा है

अपने आप में खुद ग़ज़ल है अधूरा सा चांद।



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