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Deepak Parashar

Abstract Drama Tragedy

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Deepak Parashar

Abstract Drama Tragedy

दर्द - की पहचान

दर्द - की पहचान

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न रूप है न रंग है

न जान है न जुबान है

ये बिन आवाज़ आता है

ये दर्द की पहचान है 

ये दर्द की पहचान है ।


ना माप है ना तोल है

ना नापने की चीज है

कभी कम तो कभी ज्यादा है

जिसको गले लगता है

बस वो ही इसे जान पाता है

ये दर्द की पहचान है - 2 ।


न अग्नि की तपन ये है

न वायु का ये वेग है

मन और दिल की जंग में

आँखों के जरिये बहकर ये

अपना परिचय कराता है

ये दर्द की पहचान है - 2 ।


ज़ख्म हो ये वीर का

या अपशब्द किसी करीबी का

बीच से ये दिल को चिर

इक चीख सा निकलता है

ये दर्द की पहचान है - 2 ।


तुम पढ़ गए अकेले जो

थामेगा हाथ पहले ये

लौटेगा देकर सुख चैन ये

दुश्मन न ये किसी का ये है

ये दर्द की पहचान है - 2।


दबाये इसे होंठों के बीच

चेहरे पर एक ढोंग सा

फिर रहा संसार मैं

एक खरीदार की तलाश मैं

ये दर्द की पहचान है - 2 ।


डरो न तुम इससे कभी

दिमाग का सब खेल है

किया इसे वश में जो

वो ही विजय फहराता है

ये दर्द की पहचान है - 2 ।


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