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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

माॅंगें अनन्य भक्ति

माॅंगें अनन्य भक्ति

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दाता है बस एक जग में,

जो है अव्यक्त परमशक्ति।

माॅंगना है तो मांगें केवल,

प्रभु दीजिए अनन्य भक्ति।


प्रभु भक्ति मिल गई तो,

कुछ भी शेष न रहेगा।

हर हाल प्रभु कृपा से,

हर पल सानंद ही रहेगा।

जड़-चेतन का हो हितैषी,

सदा सत्पथ ही को चुनेगा।

संतुष्टि संग हो सतत् पोषण,

बस ऐसा विकास ही करेगा।

सामंजस्यपूर्ण प्रकृति रक्षण,

और प्रभु चरण में आसक्ति।

माॅंगना है तो मांगें केवल,

प्रभु दीजिए अनन्य भक्ति।


तरे प्रहलाद और विभीषण ,

प्रभु भक्ति का आशीष पाकर।

भक्ति - वश में बंध प्रभु ने,

जूठे बेर खाए खुद गेह जाकर।

मॉंग अन्य कुछ भी निशिचर ,

फॅंसे साक्षी हैं विधु दिवाकर।

सदा ही तो नुकसान में रहेगा ,

मॉंगकर या कुछ अन्य पाकर।

जो भी बनें जगत में पर पहले ,

बन करके ही सच्चे व्यक्ति।

माॅंगना है तो मांगें केवल,

प्रभु दीजिए अनन्य भक्ति।


विशिष्ट हेतु आगमन का जग में,

क्षण भर इस तथ्य को न भूलें।

सम्पूर्ण शक्ति से करते श्रम हम,

सर्व हित के ऊंचे गगन को छू लें।

निज विद्या विवेक शक्ति थन से ,

जग में खुशियों के फूल फूलें।

सतत् शुभता समाहित करते,

हम सदा सुधारें खुद की भूलें 

स्वीकारें जीवन की हर चुनौती,

सदा सहायक हो परमशक्ति।

माॅंगना है तो मांगें केवल,

प्रभु दीजिए अनन्य भक्ति।


दाता है बस एक जग में,

जो है अव्यक्त परमशक्ति।

माॅंगना है तो मांगें केवल,

प्रभु दीजिए अनन्य भक्ति।


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