सफलता
सफलता
तुम्हें पाने के लिए मैंने,
क्या-क्या जतन ना किये।
तुमसे अलग हर इच्छाओं का,
हर बार दमन किये।
जिन्दगी सहज नहीं रहीं अपनी,
पग-पग चुनौतियां ही मिलीं।
आंखों में रातें कटीं और,
उंनींदेपन में धूप खिलीं।
एक-एक पल को हमने,
जैसे सालों सा जीये।
तुम्हें पाने...................।
मन की अंतर्दशा का क्या कहना,
अंतर्द्वंद्व का जैसे ठिकाना हो।
निर्णय अभी हुआ भी नहीं कि जैसे,
स्वागतार्थ कोई दीवाना हो।
मिटाते रहे विषाद ग्रंथि,
पर हर्ष को कभी मिटने ना दिये।
तुम्हें पाने........................।
व्याप्त निराशाओं की वेदना,
अनवरत अनसही सी रहीं।
और हृदय की तड़प हर क्षण,
अनकही ही रहीं।
सालती रही क्षोभ की चुभन फिर भी
लगन मिलन की घटने ना दिये।
तुम्हें पाने...........................।
गुजरना चाहते हैं अब मेरे दिन और रातें,
थक रहीं प्रतीक्षारत आंखें।
देर इतनी मत कर देना कि,
तेरे आने से पहले थम जाए सांसें।
सौगंध तेरी
बुझने ना देंगे आशा के दीये
तुम्हें पाने.............................।
पलकें बिछाए बैठे हैं अब भी,
कब आओगी ये तो बता।
चातक हूं मैं तू स्वाति की एक बूंद,
आना ही होगा तुझे ऐ मेरी सफलता।
आ जाना जब होगा आना,
बैठे हैं सब्र का घूंट पीये।