तपस्वी
तपस्वी


जब निकलता है चाँद रात के अंधेरे में,
मिटाने अँधेरा धरा का,
तो देखती हूँ उसे बड़े ग़ौर से
और सोचती हूँ कि यह है कोई तपस्वी,
या अदम्य साहस से भरा अद्भुत जीव,
जिसे हम चाँद कहते हैं।
कालिमा ने उसे चारों तरफ़ से घेरा है,
हृदय में अंधकार का डेरा है।
निरंतर हो रहा है क्षय,
फिर भी उसे नही है भय,
कि एक दिन इस तरह अंधेरे से घिर जाऊँगा
कि किसी को भी नज़र नहीं आऊँगा।
उसमें तो सिर्फ़ जूनून है
अमावस की छाती पर पाँव रखकर गुज़र जाने का,
और दूर बहुत दूर उसके इंतज़ार में बैठी
जगमग करती चाँदनी को वापस लाने का