शून्य
शून्य
पूर्णता कभी मिलती नहीं,
रिक्तता कभी भरती नहीं,
फ़िर क्यूँ जीवन की चक्की में,
घुन की तरह पिसे जा रहे हम ?
तरकस से निकला तीर,
और बीता हुआ वक़्त,
कभी लौट कर नहीं आता !
फ़िर क्यों उसके लिए,
गमगीन हुए जा रहे हैं हम ?
जिंदगी अर्द्धसत्य,
जब मौत सत्य है तो,
फ़िर क्यूँ उसका,
मातम मना रहे हैं हम ?
पहला पायदान भी,
मंज़िल पाने का सबब है,
तो फ़िर क्यों नहीं,
हर कदम पे खुशियाँ मनाये हम ?
शून्य से मिलकर,
शून्य को पाना हैं !
फ़िर क्यों ना आत्मा और
परमात्मा के मिलन पर,
"शकुन" जश्न्न मनाये हम ?