Shakuntla Agarwal

Abstract

5.0  

Shakuntla Agarwal

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शून्य

शून्य

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पूर्णता कभी मिलती नहीं,

रिक्तता कभी भरती नहीं,

फ़िर क्यूँ जीवन की चक्की में,

घुन की तरह पिसे जा रहे हम ?


तरकस से निकला तीर,

और बीता हुआ वक़्त,

कभी लौट कर नहीं आता !

फ़िर क्यों उसके लिए,

गमगीन हुए जा रहे हैं हम ?


जिंदगी अर्द्धसत्य,

जब मौत सत्य है तो,

फ़िर क्यूँ उसका,

मातम मना रहे हैं हम ?


पहला पायदान भी,

मंज़िल पाने का सबब है,

तो फ़िर क्यों नहीं,

हर कदम पे खुशियाँ मनाये हम ?


शून्य से मिलकर,

शून्य को पाना हैं !

फ़िर क्यों ना आत्मा और

परमात्मा के मिलन पर,

"शकुन" जश्न्न मनाये हम ?


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