मैं एक घरेलू महिला हूँ जो नारी की स्वतंत्रता में विश्वास रखती हूँ। स्वछंदता में नहीं। नारी उत्थान के लिए कुछ भी करने को तैयार। लेकिन तभी जब नारी सामाजिक मुल्यो के अनुरूप चले।
दिल से निकले गीत कवि के जनता की आवाज बऩें। दिल से निकले गीत कवि के जनता की आवाज बऩें।
भाषण के जाल में फाँसते हैं फिर कन्नी काटते हैं। भाषण के जाल में फाँसते हैं फिर कन्नी काटते हैं।
लगता है फिर नया सवेरा आयेगा गांव की हवेलियाँ जगमगायेगा। लगता है फिर नया सवेरा आयेगा गांव की हवेलियाँ जगमगायेगा।
बहुत दूर जाना है हिदायतें पापा ने जो दी उन्हें अमल में लाना है बहुत दूर जाना है हिदायतें पापा ने जो दी उन्हें अमल में लाना है
मुझे क्या अब भी अपनाओगे मेरे क्षत -विक्षत अंगों को सहलाओगे मुझे क्या अब भी अपनाओगे मेरे क्षत -विक्षत अंगों को सहलाओगे
नाच - नाच मन मोहना फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता? नाच - नाच मन मोहना फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?
स्वयं और ईश्वर की दूरी पाटना जिन्दगी कितनी ही सरल क्यों ना हो? स्वयं और ईश्वर की दूरी पाटना जिन्दगी कितनी ही सरल क्यों ना हो?
नये-नये कयास लगा रहे हो, मुझ पर दोषारोपण कर, नये-नये कयास लगा रहे हो, मुझ पर दोषारोपण कर,
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ? क्यों व्यर्थ का रोना ? फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ? क्यों व्यर्थ का रोना ?
ऐ मेरे मालिक तेरा शुकराना पग - पग पे सम्भाला बहुत। ऐ मेरे मालिक तेरा शुकराना पग - पग पे सम्भाला बहुत।