Shakuntla Agarwal
Literary Brigadier
AUTHOR OF THE YEAR 2020,2021 - NOMINEE

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मैं एक घरेलू महिला हूँ जो नारी की स्वतंत्रता में विश्वास रखती हूँ। स्वछंदता में नहीं। नारी उत्थान के लिए कुछ भी करने को तैयार। लेकिन तभी जब नारी सामाजिक मुल्यो के अनुरूप चले।

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जिस लक्ष्मी के कारण इन्सान मशीन बन गयाहै।वह कोरोना काल में काम नही आ रही। रुतबे और पैसे वालों का भी जो हाल हुआ है वह जग जाहिर है।फिर भी हम बाज नही आ रहे।

हे मां तुझे सलाम। दुःख भंजन मां। मां तेरी महिमा का बखान सुरज को दीया दिखाने समान।अपने चालम की जुती पहनाकर भी तेरे कर्ज को उतार नही पाऊंगी। तेरी दुआ तबीज बन मेरे साथ चलती है हर मंज़िल को छुआकर ही दम लेती है।

अपने चाम की जुती भी यदि मैं अपनी मां को पहना दूंतो भी मैं उनके अहसानों को उतार नहीं पाऊंगी। मां ही है जिसने मुझे जीवन दिया और आज मैं दुनिया में सिर उठा कर जी पा रही हुं

अपने चाम की जुती भी यदि मैं अपनी मां को पहना दूंतो भी मैं उनके अहसानों को उतार नहीं पाऊंगी। मां ही है जिसने मुझे जीवन दिया और आज मैं दुनिया में सिर उठा कर जी पा रही हुं

कोरोना ने कहर बरपाया है हर इन्सान घबराया है। भगवान भी रूष्ट नज़र आया है।किससे कहें कोन सुनेंगा समझ नहीं आया है।ऐ मेरे मालिक तु ही सम्भाल तेरे सिवा कोई नहीं हमसाया है।

जिन्दगी बहुत खुबसूरत है। जिन्दगी जख्म देती है तो मरहम भी वही लगाती है। जिन्दगी को भरपूर जीओ। जिन्दगी सही मायने में पानी का बुलबुला है।यह क्षण भंगुर है।

आज के युग में चिकित्सकों ने चिकित्सा को खिलवाड़ समझ लिया है। वह मरीज़ के साथ मन से नहीं जुड़ते। चिकित्सकों ने चिकित्सा को नोट छापने की मशीन समझ लिया है। मरीज़ के आते ही समझते हैं मुर्गा आया काटो।रही सही कमी बीमा कंपनियों ने पुरी कर दी।

स्वार्थ के लिए मनुष्य कुछ भी करने को तैयार हैं।वह इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे अपने जीवन यापन के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। अपने स्वार्थ में अंधा होकर उसने मां बाप को भी असहाय बना दिया है।

प्रकृति ने हमें बहुत खुब खजाना बक्शा है।जिसे हमें सहेज कर रखना चाहिए।


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