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Shakuntla Agarwal

Abstract Others

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Shakuntla Agarwal

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"चिन्ता"

"चिन्ता"

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पंचतत्वों से देह बनी

 "शकुन" माटी ही बिछौना

 अन्त समय जब आयेगा

  खाक के सुर्पद होना

 फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

   क्यों व्यर्थ का रोना?

   बस में तेरे कुछ नहीं

  विधाता चाहे जो होना

 फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

   क्यों व्यर्थ का रोना?

  चाबी भारी खिलौने में

   नाच - नाच मन मोहना

फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

   क्यों व्यर्थ का रोना?

  कर्म तूने करना प्राणी

  भाग्य लिखा जो होना

फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

   क्यों व्यर्थ का रोना?

 काल के हाथों परबस हैं

 पल - पल हिसाब होना

फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

   क्यों व्यर्थ का रोना?

 राजा हो या रंक, फकीरा

   हाल एक ही होना

फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

   क्यों व्यर्थ का रोना?

 चिंता चिता एक समान

  पल एक - एक खोना

घुन की तरहा जब लगे शरीर में

 लकड़ी जूं बुर - बुर होना

फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता?

  क्यों व्यर्थ का रोना?



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