माँ
माँ
कई को पाला और आज वो अकेली है
बोझ बन गई माता कैसी यह पहेली है ।
ममता के पालने में तुमको वो झुलाती रही
रातभर जागकर लोरी तुम्हें सुनाती रही ।
ठंड जब लगी तुम्हें गर्म वो रज़ाई बनी
लगी जब धूप तो वो पेड़ की परछाईं बनी।
ऊँगली पकड़ तुमको चलना उसने था सिखाया
ठोकर लगने पे तुमको पग- पग पर था बचाया ।
अब तुम एक एक कर उसे छोड़ रहे हो
बताओ अपनो का दिया वो दर्द किससे कहे।
बुढ़ापा आते ही बच्चा बनी तेरी मईया
धूप लगने पर ढूँढती है पेड़ की छइयाँ।
आँख कमज़ोर है और टाँग उसकी काँपती है
पकड़ ऊँगली तुम्हारी अब वो चलना चाहती है ।
गर्भ से जन्म लेने का है तुमपर क़र्ज़ चढ़ा
दूध अनमोल ब्याज जाने कितना हर दिन बढ़ा ।
ईश्वर से बड़ी है माँ यह न भूलो तुम कभी
बड़ी क़िस्मत है कि माँ साथ में है तेरे अभी ।