बारिश की बूँद
बारिश की बूँद

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जब बढ़ गई थी मुलाक़ात,
तो सबको पता चली थी,
हमारी मोहब्बत की बात
उस दिन एक जलजला
एक उफान आया था,
हमारे घरों में तूफ़ान आया था।
हम दोनों बेहिसाब डरे थे,
और अपनों की अदालत में,
मुज़रिम से खड़े थे।
उस वक़्त हम थे बेहद लाचार,
हमारे पास लड़ने के लिए,
नहीं था कोई हथियार।
हाथ-पाँव फूल गए थे,
हम मुस्कुराना तक भूल गए थे।
हमारे ख़्वाब, हमारी ख़ुशियाँ रूठ गई थी,
मुहब्बत की कहानी बहुत पीछे छूट गई थी।
हम एक-दूजे के लिए हो गए थे अजनबी,
लेकिन खोई परछाईं को ढूँढने की,
बेताबी बढ़ जाती थी कभी-कभी।
अब, जब भी उमड़ती घुमड़ती घटाओं को,
ग़ौर से देखती हूँ
तो लगता है कि तुम ही
आकाश में छितराए बादलों में समाते हो,
और बारिश की बूँदें बनकर
मुझसे मिलने आते हो ।