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Lakshman Jha

Abstract

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Lakshman Jha

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अमर हमारी दोस्ती रहेगी

अमर हमारी दोस्ती रहेगी

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अब कहाँ रूठने

और मनाने की बात रही ?

हम सभी से जुड़ गए

एहसास ही खलती रही !


दूर इतने हम हो गए

कौन हमको जान पायेगा !

फेसबुक के पन्नों में

नहीं हमें पहचान पायेगा !


हम किसी की बात से

आहत कभी भी हो गए !

आप हमारी भंगिमा को

पहचानने से भी रह गए !


रूठने की अदा

देखकर हम उन्हें जान जाते थे !

उनकी पीड़ा को

समझकर करीब से पहचानते थे !


रूठने मानाने का दौर

यूँहीं चलता रहता था !

प्यार का एहसास इस तरह

मिलता रहता था !


पर आज कहने के लिए

विश्व से हम जुड़ गए हैं !

मित्र लाखों को बनाकर

फ़क्र से हम रह रहे हैं !


कभी मर्म भेदी वाण से

आहत किसीको करते हैं !

दिल की बातों को

इन पन्नों में हम नहीं जानते हैं !


बेरुखी का आलम

पहले तो अनफॉलो करते हैं !

बाद में विक्षुब्ध होकर

मित्र अनफ्रेंड बनके करते हैं !


डिजिटल मित्रता है मित्रता

जब हम जुड़ें हैं प्यार से !

सम्मान सबको दें बराबर

शालीनता की बात से !


हम भले उनको ना देखें

पर लेखनी उनकी कहेगी !

रूठने की बातें भूल जाएँ

अमर हमारी दोश्ती रहेगी !


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