सुस्तड़
सुस्तड़


अरे ! अब क्या कहें,
एक दौर था जब हम
सोते तो बिलकुल भी नहीं थे
और लोग मार मार कर
सुला दिया करते थे।
और एक आज का दौर है कि
घरवालों के साथ साथ
पड़ोसी भी चिल्ला चिल्लाकर
हमें जगाया करते हैं।
पहले ये खुद कहते थे कि
बड़े बड़े सपने देखा करो
अब उन्हें कौन समझाए कि
इन्हीं सपनों के चक्कर में
हम देर देर तक सोते हैं।
पर सपनों का जिक्र करो
तो ना जाने क्यों वो सब
माथा ठोक ठोककर रोते हैं।
आलसी कहते हैं हमें सभी
भला ये भी कोई बात है
क्या बताएं ये कैसा राज है।
आलसी तो नहीं है हम बस
सुस्ती हममें थोड़ी ज्यादा है
पीटने लगे जब मैंने कहा
तुम भी सो जाओ और
देखों ये कैसा मजा है।