पलाश के फूल
पलाश के फूल
पतझड़ में झड़ गए पत्ते सारे सूखी शाख पर लगी है आग,
डाल-डाल से उठी रही लपटें, देखो खिल गए फूल पलाश।
जैसे सच्चे दो प्रेमियों की प्रेम कहानी, छुपाए नहीं छुपती,
वैसे ही चहुँओर गगन में और धरा पर दिखते फूल पलाश।
दीपक की ज्योति सम बनावट इसकी रंग केसरिया लाल,
खिले फाल्गुन मास पूर्णिमा, औषधीय गुण इसमें कमाल।
कोई ढाक कोई कांकेड़ी कोई टेसू कोई कहे फूल पलाश,
प्राचीन वेदों में भी वर्णित है, इसकी महिमा बड़ी है खास।
खिल उठती है जब यह, प्रकृति की अनूठी रचना बनकर,
मन मोहित कर देती ,फिजाओं में रंग अनोखा बिखेरकर।
अद्भुत सौंदर्य समाहित इसमें, प्रकृति का यह दिव्य श्रृंगार,
बिखर जाती धरा पर ऐसे जैसे वसुंधरा के हो गले का हार।
केसरिया लाल है प्रधान रंग श्वेत पितांबर भी इसकी जात,
पलाश वृक्ष से ही तो प्रचलित मुहावरा, ढाक के तीन पात।
बसंत ऋतु की शोभा फूल पलाश खिले अंत फरवरी मास,
रंग प्राकृतिक बने इसी से होली उत्सव में जो लाए उजास।
प्राचीन काल से ही इस फूल के रंगों से, खेली जाती होली,
श्री कृष्ण और राधा जी को भी प्रिय पलाश रंगों की होली।
उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्य का, राज्य पुष्प कहलाता,
टिकट पर मिला है सम्मान इसे, देशभर में ये जाना जाता।