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Damyanti Bhatt

Abstract

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Damyanti Bhatt

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Untitled

Untitled

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प्रतिबिंब 

पकड़ लेने वालों

हृदय में

सुलग रही

धूनी का

प्रतिबिंब नहीं होता


जल की बूंदें

शीतल कर देती

धधकती लपटें

तब भी

मनुष्य गर्वीला


बहु विकल्पी बनने से 

प्रश्न बन जाना भला

बार बार

हृदय दुखने से

हृदय हीन भला


मोह में डूबा मन

विवेक खो देता

बैर भरी घृणा से

दिखाने का प्रेम भला


बनूं माटी

टूटूं फिर जुड़ूं

चूमूं मिट्टी

मिट्टी से कुछ सीखूं

कण-कण पर वारी जाऊं


हृदय कोई

जगह नहीं

हर दिन बदली जाये

वह संदूक है

जिसकी कुंजी प्रेम है



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