Untitled
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घास काटती औरतें
बीठों पाखों पर
खुदेड़ गीत लगाती
प्रकृति के सुन्दर अंचल में
कुछ रूझी
कुछ भीजी
खिली देह उनकी
प्रकृति के सुन्दर अंचल में
परदेशी की खुद में
खुदेड़ गीतों में
कफु की कूक
घुघती की घूर घूर में
निन्यारों की निनर
मेलूडी का विरह
उसके संग संग
रचती है संगीत
कुहेडी लुक छुप
भीगी पावस की बौछारों
हिमपात
पतझड़
गर्मी
फूल्यार के फूलों में
गायों के गो चरण में
मृगछोनों के मृदंग में
वन नदियों की छनछन में
तुलसी के काव्य में
कालिदास के मेघदूत में
विरही जनों के गीतों में
पहाड़ की औरतों की
विरह व्यथा है
जनम मरण की पुनरावृत्ति
काल चक्र का
कटु अनुशासन
"काल" शिला के
स्वर्णाक्षरों में
उड़ते पंछी
जल भरी कुहेडी
भिगा देती धरती का कोना कोना
प्रकृति भी खुश हो उठती है
हरी साड़ी
हरी चूड़ी
हरी हरी डांडी कांठी सी
लकदक
धरती हंसती
प्यारे सावन में
भर जाती फसलें
भादो के आवन में।