रिश्तों की डोरी
रिश्तों की डोरी
सब कुछ है जीवन में
बस नहीं है तो
तेरा मनुहार
तेरा प्यार
चाय की लत भी ऐसी है
बिलकुल तुझ जैसी है
उनींदी कई रातें रह जाती
चाय की हर घूंट
परखती मुझको
पेड से टूटी पत्तियां
कब जुडती
बरसों थामी थी रिश्तों की डोरी
कमजोर थी टूट गई
जुडी तो
गांठ बंध गई
माटी के मोल
लग गई प्रीत मेरी
न किसी ने सुनी न समझी।