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Damyanti Bhatt

Abstract

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Damyanti Bhatt

Abstract

रिश्तों की डोरी

रिश्तों की डोरी

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सब कुछ है जीवन में

बस नहीं है तो

तेरा मनुहार

तेरा प्यार


चाय की लत भी ऐसी है

बिलकुल तुझ जैसी है

उनींदी कई रातें रह जाती

चाय की हर घूंट

परखती मुझको


पेड से टूटी पत्तियां

कब जुडती


बरसों थामी थी रिश्तों की डोरी

कमजोर थी टूट गई

जुडी तो

गांठ बंध गई


माटी के मोल

लग गई प्रीत मेरी

न किसी ने सुनी न समझी।


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