कुछ यादें बुला रही थी
कुछ यादें बुला रही थी
जो पीछे मुड़ के देखा तो,
कुछ यादें बुला रही थी।
अब तक के सफर की,
सारी बातें बता रही थी।।
कितनी मुश्किल राहें थीं,
हम क्या क्या कर गए।
एक सुकून की तलाश में,
कहां कहां से गुजर गए।।
कितने लोग मिले सफर में,
कितने बिछड़ गए।
बचपन के साथी,
जाने किधर गए।।
हर उम्र के सपने अलग थे,
दृष्टिकोण अलग था।
मकसद अलग था
मोल अलग था।।
आईने में खुद को देख कर,
रोज सोचती रहती हूँ।
क्या खोया क्या पाया,
अक्सर तौलती रहती हूँ।।
उम्र के साथ साथ।
सोच बदलती रहती है।
चाहत बदलती रहती है,
खोज बदलती रहती है।।
अब इस मुकाम पर,
एक ठहराव आ गया है।
मंज़िल का तो पता नहीं,
पर पड़ाव आ गया है।।
बेचैन मन को राहत
अब मिलने लगी है।
समझौता कर लिया तो,
ज़िन्दगी मुकम्मल लगने लगी है।।
ऐ ईश्वर तेरा धन्यवाद,
तुझसे कोई शिकवा नहीं है।
यहां सब थोड़े अधूरे से हैं,
किसी को पूरा मिला नहीं है।।
बहोत सारी कट गई,
अब थोड़ी सी बची है।
, बस यही ज़िन्दगी है।
बस यही ज़िन्दगी है।।