प्रेमी परिन्दे
प्रेमी परिन्दे
प्रेम समर्पण, स्नेह निष्ठा के प्रतीक तुम एक
पत्नी व्रता कहे जाते ऋषि युग सम
प्रेयशी के मरने पर खुद भी त्याग जी देते
किसी अन्य को उसका स्थान न दे पाते
पक्षी कितने मासूम कितने भोले निश्छल ,
फिर भी तुम रहते क्यों ऐसे प्रेम विह्वल?
कोई तुमसे प्रेम निःस्वार्थ करना सीखे
नयनों के आगे-पीछे बस वे ही दीखे
तुम कभी प्रेमी के प्रति बेवफा न होते
पवित्र पूज्य परिन्दे सुखद गृहस्थ कहते
पंख फैला रास युगल नृत्य तुम करते
रक्षक बन एक-दूजे के संग रह विचरते
रामायण की रचना का श्रेय,तुमको जाता
देख क्रौंच पक्षी का दुख,श्लोक बन जाता
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीःसमाः
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।
शायद लोमड़ी के धोखे को याद कर तुम
शंख के खोल को बना थाली पी रहे सूप
करत-करत अभ्यास,जड़मति होतसुजान
रसरी आवत जात ते,सिल पे होत निशान
ठीक ही है तुम खुद को बदल, रीत दे रहे
शठे शाठ्यम समाचरेत् की, लीक ले रहे।

