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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Romance Classics

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Romance Classics

प्रेमी परिन्दे

प्रेमी परिन्दे

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प्रेम समर्पण, स्नेह निष्ठा के प्रतीक तुम एक

पत्नी व्रता कहे जाते ऋषि युग सम


प्रेयशी के मरने पर खुद भी त्याग जी देते

किसी अन्य को उसका स्थान न दे पाते


पक्षी कितने मासूम कितने भोले निश्छल ,

फिर भी तुम रहते क्यों ऐसे प्रेम विह्वल? 


कोई तुमसे प्रेम निःस्वार्थ करना सीखे

नयनों के आगे-पीछे बस वे ही दीखे


तुम कभी प्रेमी के प्रति बेवफा न होते

पवित्र पूज्य परिन्दे सुखद गृहस्थ कहते


पंख फैला रास युगल नृत्य तुम करते 

रक्षक बन एक-दूजे के संग रह विचरते


रामायण की रचना का श्रेय,तुमको जाता

देख क्रौंच पक्षी का दुख,श्लोक बन जाता


मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीःसमाः

 यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।


शायद लोमड़ी के धोखे को याद कर तुम

शंख के खोल को बना थाली पी रहे सूप  


करत-करत अभ्यास,जड़मति होतसुजान

रसरी आवत जात ते,सिल पे होत निशान 


ठीक ही है तुम खुद को बदल, रीत दे रहे

शठे शाठ्यम समाचरेत् की, लीक ले रहे।  


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