धूप और कोहरा
धूप और कोहरा
सर्दी बोलती है
कोहरा बोला,"देखो मुझे,
हर दिशा को ढक लूँ मैं।
चुपके से आ, यों बाँध लूँ,
धूप मुस्काई,"घमंड क्यों?
मैं आऊँ सब मिट जाएगा।
तेरे बंधन कर छिन्न-भिन्न ,
धरा पर जीवन छाएगा ।"
कोहरा हंसा,"तू क्या जाने,
मेरी चादर कितनी है गहरी ।
धूप ने कहा, "रहने दे अब,
तेरा खेल कुछ पल का है।
बस छिन्न-भिन्न से हल्का है
मेरे छूते तेरा वजूद क्षणिक,"
यूं दोनों की तकरार चली,
सूर्य रश्मि गर्मी बढ़ती गयी।
कोहरा छिटक गायब हुआ,
सीख
संदेश यही, हर मुश्किल छँटे,
धैर्य और आशा से जीवन चले।
