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Damyanti Bhatt

Classics

4  

Damyanti Bhatt

Classics

Untitled

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1 min
367


मेरी किस्मत मुझ पर मुस्कुराती है

इस किस्मत ने 

कितने रंग दिखलाये

साहस कितना इसका 

छीन ले गयी सिर से छत

ले गयी संदूक

रह गयी उसकी चाबी


फिर तिल तिल कर

लोगों से मांग कर, पिता की कमाई से

फिर आशियाना जोड़ना

अपने लिए छत खड़ी करना

ये तो करना ही था मुझको

जीवन जीना था मुझको


आज मैं फिर वहीं खड़ी हूं

जहां से मेरा सफर शुरू हुआ था

चौराहा जिंदगी का

सुनसान


जीवन में रिश्तों का होना और उनको समझना

हर बार ठोकर खाना

दर्द चोट आंसू

हंसना मुस्कुराना


अकेला रहना भी जरूरी है

रिश्तों से

चौराहों पर भटकना भी जरूरी है

उम्मीद और भरोसा होना भी जरूरी है


शायद कोई 

हमसफर बन कर न सही

हमदर्द बन कर आ रहा हो

जिसके होने से

जिंदगी जंग न लगे

जो पूछे तुम कैसी हो

बस थोड़ा स्नेह दिखा दे


जो दुनिया को न दिखाये

शराफत अपनी

जो मुस्कुराकर हर रीत निभा दे

 

जो तेरा खून

मेरा खून 

रिश्तों मैं ये बात हटा दे


आखिर जब दो देहरियां एक हो गयी

मेरे से नाता जोड़ कर

कभी सोचो कि 

मुझसे जुड़े हर रिश्ते पर दिल है

वो भी तरसते हैं

धड़कते हैं

कभी उनको भी मुस्कुराना है

मेरी तो किस्मत मुस्कुराती है

कुछ तो सार रहा 

शबरी और अहिल्या के इंतजार में

पत्थर में प्राण

जूठन में प्रेम



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