Untitled
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काश एक तारा टूट जाये
मैं तुझे मांग लूं
खुश दिख रही जितना
उतनी टूटी हूं अन्तर से
वो सच्चे होने का
ढोंग रहे करते
जितने झूठे हैं
क्या भूलूं
क्या याद करूं
मुझसे मेरे झूठे रिश्ते
जिंदगी भर को रूठे हैं
जिसका जीवन
सीधा साधा
उस पर हुनर अनूठा होता
समझते सब नसीब वाला
जो आधा फूटा होता
चाहे लाख जता दो
बादशाहत अपनी रिश्तों को निभाने की
हंस कर जीते दिखने वालों को
किसी न किसी रिश्ते ने जी भर कर लूटा होता
कभी पीठ पर कभी हृदय पर
कभी गले मैं पैर रख कर
बस आंख बंद करूं
सोचूं तुझे पा जाऊं
दिन भर की बातें
ओस जैसी
जरा सी धूप पड़ी सब गायब
ये कोई खत नहीं
ये नसीब है
कैसे किसी के भी हाथ थमा दें?