मन बंजारा
मन बंजारा
पीड़ाओं के आसमान और आशाओं की धरती लेकर।
बन बन भटके मन बंजारा कुछ यादों की गठरी लेकर।
जिनसे आशाएं उम्मीदें वे ही बेदर्दी निकले।
शीशे जैसे सपने टूटे घाव बड़े गहरे दिल के
मन फिर भी भागा जाता है कुंठाओं की अर्थी लेकर।
बन बन भटके मन बंजारा कुछ यादों की गठरी लेकर।
कैसी मेरी आकांक्षा साथ धूप शबनम का कैसे।
चांद मिलन सूरज से चाहे संभव ऐसा हो कैसे।
बिरहन धरती आसमान से बैठीआस मिलन की लेकर।
बन बन भटके मन बंजारा कुछ यादों की गठरी लेकर।

