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V. Aaradhyaa

Classics

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V. Aaradhyaa

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जेठ मास झूलसाए

जेठ मास झूलसाए

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ई ज्येष्ठ मास मृगतृष्णा बाढ़े।

दोपहरी दिन अतिशय गाढ़े।

सन्नाटा पसरे जग माहीं।

बाग तात सींचे झुलसाहीं।।


सूरज  ताप  झरें‌  अंगारे।

त्राहि त्राहि जग जीव पुकारे।।

नीर विहीन हुए सर सरिता।

ज्येष्ठ मास तपे अस सविता।।


पंथी  पंछी  खोजें  छाया।

जब ते ज्येष्ठ मास नियराया।।

झरने  सोते सभी  सुखाने।

जल संकट चहुँदिश गहराने।।


सविता रूप  धार  विकराला।

जन मानस लख हुआ बिहाला।।

आय  सहाय  करो  त्रिपुरारी।

मृत्यु अकाल न होय हमारी।।


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