नदी किनारा
नदी किनारा
नदी किनारे गुजारी वह शाम
खूबसूरत सी चल रही थी वह बात
शांत था समा उस पानी की तरह
फिर रौशन हो उठा उस सूरज की तरह
अपने कामों मैं लगे वह नाव के मालिक
किनारे से जाके मिले जरा नजदीक
उनको देखते देखते हम तो भूल ही गये वह महफिल
प्यार के राही कर रहे थे कुछ बाते
बातों मैं निकली वह कई सारी प्यारी प्यारी यादें
यादों का सफर तो काफी पुराना था
बस उन्ही का ही तो अब सहारा था और
उसमे भी इस नदी के किनारे का बडा प्यारा हिस्सा था
वह तो हमेशा से ही थी
बस हम ही उसका रास्ता भटक गये थे
अच्छा हुआ हुई आज यह महफिल
याद आयी फिर से यादे वही सारी झिलमिल......