घर कहाँ है
घर कहाँ है
घर होता वहाँ जहाँ अपनत्व और ममत्व का संगम है
घर होता वहाँ जहाँ एक दूसरे के बीच प्यार का बंधन है
घर है वो जगह जहाँ आकर इंसान भूलता गम है
घर के सुख के आगे तो स्वर्ग भी कम है
खुशियों की जहाँपर होती बरसात है
एक दूसरे का जहाँपर मिलता साथ है
जहाँ सब दुख बाटते और मिलकर मनाते त्योहार है
घर है वहाँपर जहाँपर एक सुखी परिवार है
जहां पापा का लाड़ हो , मम्मी का प्यार हो
दादी की डांट हो , दादा का दुलार हो
जहाँ भाई - बहना की मीठी सी लड़ाई हो
पर बहना से करता सबसे ज्यादा प्यार भाई हो
जहाँ एक साथ परिवार की बैठक लगती हो
घर वो जगह जिसके आंगन में खुशिया हंसती हो
जहाँपर बचपने की गूंजती किलकारी हो
जहां खुशियों के रंग से भरी पिचकारी हो
जिन चार दीवारों में सुख दुख खेलते है
जिन चार दीवारों में अपने मिलते है
वो ही चार दीवारे घर कहलाती है
माँ की ममता , पत्नी का प्यार घर को घर बनाती है
इटो का नही जो भावनाओ से बना हुआ हो
दुखो की आँधी झेलने के बाद भी जो चैन से तना हुआ हो
जहाँ बड़ो का आशीर्वाद हो और छोटो की मस्ती हो
घर है उस जगह जहाँ जज्बातों की बस्ती हो
जहाँ बुढ़ापे में बच्चे बनते सहारा है
जहाँ दादा को बेटे से ज्यादा पौता प्यारा है
घर है वो जगह जहाँ खुशियों का भण्डार हो
घर है वो जगह जहाँ एक सुखी परिवार हो
घर है वो जगह जहाँ अपने अपनो से मिलते है
मतभेद होते जहाँपर पर मन न एक दूजे से भटकते है
मुसाफिर जिस जगह पर मनभेद नही है
समझ लेना कि घर वही है।
