STORYMIRROR

Piyosh Ggoel

Abstract

4  

Piyosh Ggoel

Abstract

घर कहाँ है

घर कहाँ है

2 mins
294

घर होता वहाँ जहाँ अपनत्व और ममत्व का संगम है

घर होता वहाँ जहाँ एक दूसरे के बीच प्यार का बंधन है

घर है वो जगह जहाँ आकर इंसान भूलता गम है

घर के सुख के आगे तो स्वर्ग भी कम है


खुशियों की जहाँपर होती बरसात है

एक दूसरे का जहाँपर मिलता साथ है

जहाँ सब दुख बाटते और मिलकर मनाते त्योहार है

घर है वहाँपर जहाँपर एक सुखी परिवार है


जहां पापा का लाड़ हो , मम्मी का प्यार हो

दादी की डांट हो , दादा का दुलार हो

जहाँ भाई - बहना की मीठी सी लड़ाई हो

पर बहना से करता सबसे ज्यादा प्यार भाई हो


जहाँ एक साथ परिवार की बैठक लगती हो

घर वो जगह जिसके आंगन में खुशिया हंसती हो

जहाँपर बचपने की गूंजती किलकारी हो

जहां खुशियों के रंग से भरी पिचकारी हो


जिन चार दीवारों में सुख दुख खेलते है

जिन चार दीवारों में अपने मिलते है

वो ही चार दीवारे घर कहलाती है

माँ की ममता , पत्नी का प्यार घर को घर बनाती है


इटो का नही जो भावनाओ से बना हुआ हो

दुखो की आँधी झेलने के बाद भी जो चैन से तना हुआ हो

जहाँ बड़ो का आशीर्वाद हो और छोटो की मस्ती हो

घर है उस जगह जहाँ जज्बातों की बस्ती हो


जहाँ बुढ़ापे में बच्चे बनते सहारा है

जहाँ दादा को बेटे से ज्यादा पौता प्यारा है

घर है वो जगह जहाँ खुशियों का भण्डार हो

घर है वो जगह जहाँ एक सुखी परिवार हो


घर है वो जगह जहाँ अपने अपनो से मिलते है

मतभेद होते जहाँपर पर मन न एक दूजे से भटकते है

मुसाफिर जिस जगह पर मनभेद नही है

समझ लेना कि घर वही है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract