सिक्कों का सफर।
सिक्कों का सफर।
यूँ ही एक रोज घर की देहरी में बैठा हुआ था मैं,
अचानक मेरे अंतस से सवालों की लहर फूटी,
कई लोगों को जीवन का सबक सिखलाने वाले सुन,
तेरा जीवन ये क्या सच है या तेरी जिंदगी झूठी,
क्यों बस अपने गमों की उलझनों में फंस गया है तू,
न जाने कितने ऐसे हैं जो बस हैं सोचते रहते,
ये क्या है क्यों है कैसे है कहाँ से आ गया है ये,
जरूरी क्यों हुआ है रोज उठकर वो ही करना हां,
उन्ही कुछ चंद सिक्कों के लिए एक जिंदगी जाया,
कभी गर नींद आएगी सुकून से पूछना खुद को,
कौन सी रात थी वो ख्वाब जब कोई नया आया,
खुशी से कब हुआ झगड़ा हंसी कबसे है यूँ रूठी,
यूँ ही एक रोज घर की देहरी में बैठा हुआ था मैं,
अचानक मेरे अंतस से सवालों की लहर फूटी,
कई लोगों को जीवन का सबक सिखलाने वाले सुन,
तेरा जीवन ये क्या सच है या तेरी जिंदगी झूठी,
बहुत से लोग हैं जो मात खाये हैं समय से बस,
बहुत से लोग अपनो की वजह से लड़ रहे खुद से,
कई ऐसे भी है जो खुश हमेशा दिख तो जाते है,
वो बस क्योंकि उन्हें परहेज हो शायद हां आंसू से,
कई बेचारे इस हां इसी इश्क़ की धार के काटे हैं,
वो जो हरदम सभी के वास्ते डटकर खड़े रहते,
वो खुद जब लड़खड़ाए तब किसी ने दुख न बांटे है,
बहुत से लोग जो इन उलझनों में हार जाते हैं,
सभी सपनों को सारी ख्वाहिशों को मार जाते हैं,
हां ऐसे लोग जो दुनिया के हर कोने में फैले हैं,
उनकी असलियत में गिनती जाने क्या ही हो सोचो,
ख़ुशी भी धन की तरह बस कुछ एक लोगों को मिलती है,
और बाकी सबों के नाम कागज में एक गिनती है,
कई के घर पड़ा डांका ख्वाहिशें ले गयी लूटी,
यूँ ही एक रोज घर की देहरी में बैठा हुआ था मैं,
अचानक मेरे अंतस से सवालों की लहर फूटी,
कई लोगों को जीवन का सबक सिखलाने वाले सुन,
तेरा जीवन ये क्या सच है या तेरी जिंदगी झूठी।