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Ambuj Pandey

Drama

3  

Ambuj Pandey

Drama

बचपन

बचपन

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कुछ याद करो वो दिन जब हम भी गाते थे मुस्काते थे,

कुछ याद करो वो रातें जब लोरी सुनकर सो जाते थे,

वो रात का सो जाना जल्दी वो दिन का उतना देर से,

चैन भारी वो नींद दूर दुनियादारी के फेर से।


कुछ याद है वो दादी माँ जब परियों की कहानी सुनाती थीं ?

परियां सपनों में आती थी जन्नत की सैर कराती थी,

वो यार दोस्तों के संग जब सड़कों पर खेलने जाते थे,

न डर था किसी बात का उल्टे खुद से कभी डर जाते थे।


कुछ याद है वो पतली सी नदी जो घर के बगल से जाती थी,

सोनू, पप्पू, रानू, गुड़िया, सीलु आवाज लगाती थी,

फिर घंटों हम जा करके उनके साथ बैठ बतियाते थे,

फिर थक हार कर भीग भागकर घर वापस आ जाते थे।


वो आम की बौरें अमरूद वो, वो बदलू के घर की इमली,

वो पिल्ले वो चूहे, चिड़िया वो बेला पर वाली तितली,

वो छुपम छुपाई पकड़म पकड़ी चोर पुलिस और स्टेचू,

वो जोगी बाबा की गीतें वो सोनी चाची के घुंघरू।


व पापा की पारले टॉफी वो जादू वाले मदारी जी,

वो धुएं की खुशबू आय हाय जब चालू होती गाड़ी जी,

वो शक्तिमान जूनियर जी वो शाक लाक बूम बूम,

वो हर एक शाम हर गली गांव की जो तगड़ी सी मचती धूम।


बड़ी बड़ी बातें है तबकी बड़े बड़े सब वादे है,

जब भी उलझे इन किस्सों में न जाने कितनी यादें है,

न किसी बात की टेंशन न रिश्तों का कोई बंधन था,

काश हमे फिर से मिल जाये दिन वो अपने बचपन का।


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