तुम मेरी बेटी नहीं हो
तुम मेरी बेटी नहीं हो
क्या हुआ जो तुम,
मेरी बेटी नहीं हो,
क्या हुआ जो,
गोद न तुमको खिलाया।
क्या हुआ जो तुम,
मेरे आंगन न खेली,
क्या हुआ जो तुमको,
मैंने न था जाया।
क्या हुआ जो तुम,
मुझे पापा न बोली,
क्या हुआ जो आँख,
मेरे तुम न रोली।
क्या हुआ जो मैंने,
तुमको न था ब्याहा,
क्या हुआ जो कांधे,
पर न ली थी डोली।
पर मगर फिर भी,
तेरी जब चीख आयी,
पर मगर फिर भी,
जो आहें दी सुनाई।
पर मगर फिर भी,
जो तेरी आबरू पर,
उँगलियाँ दीं उन,
दरिंदो की दिखाई।
पर मगर फिर भी,
जो तूने था पुकारा,
पर मगर फिर भी,
न दे पाया सहारा।
पर मगर फिर भी,
किसे मैं दोष दूँ अब,
कुछ करूँ ऐसा के,
न हो फिर दोबारा।
दर्द तेरा मेरी,
आँखें रो गयी हैं,
चुप रहो सब मेरी,
बिटिया सो गई है।
लाजिमी है उस,
अम्मा-बाबा का डर भी,
जिनके घर में फिर,
एक गुड़िया हो गयी है।
क्या करे गर पेट में,
तुमको न मारें,
पैदा कर दें,
पाले-पोषे, हम सँवारे।
फिर कोई हैवान,
एक दिन आ कहीं से,
आबरू लूटे,
तेरी इज्जत उतारे।
माफ करना लाडो,
हम न सह सकेंगे,
देख तुझको बिन,
तेरे न रह सकेंगे।
हाँ मगर जब तुझको,
जाया ही नहीं तो,
उस लोक में खुश होगी,
खुद को कह सकेंगे।
बाहरी लोगों से मैं,
फिर भी बचा लूँ,
घर के अंदर कैसे,
क्या पहरे लगा लूँ।
है कमर जिनकी,
दिख रही है वक्ष,
जिनका दिख रहा,
उत्तेजना हो वो अगर।
अब तुम ही,
कह दो छः महीने,
की है उसका,
क्या छिपा लूँ।