शर्माजी के अनुभव: बलात्कारी का बाप
शर्माजी के अनुभव: बलात्कारी का बाप
मन्दिर की सीढ़ियों पर आज मैं टकरा गया
कोई जो बैठा था अंजान, घबरा गया
हम दोनों ही माफी मांग रहे थे आपस में
अनायास, रंग ढंग उनका नाम याद करा गया
सज्जन का बेटा मेरे बेटे के साथ पढ़ा था
उनको यहाँ देख मुझको अचरज बड़ा था
मैं बोला भाईसाहब साथ चले क्या मंदिर में
न जाने इतना सज्जन व्यक्ति किस गम में गड़ा था
पहचानकर, बोले आप हो आइये मैं यही रुकूँगा
मेरी कट्टी है जरा भगवान से, इससे आगे नहीं चढ़ूँगा
मैं भी जल्दी ही जाकर लौट आया दर्शन कर
चलिए घर चले आपके साथ चाय पर गपशप करूँगा
हम पैदल ही चले आये अब घर में हम ही थे
आज पता नहीं क्यों वो ज्यादातर चुप ही थे
मुझे खल गई खामोशी तो पूछा बेटा कैसा है आपका
लगा मेरे शब्द उनके लिए जहर बुझे तीर ही थे
उफन उठा दर्द का सैलाब आँखों में उनके
धागा टूट गया और बिखर उठे आंसू के मनके
मुझे याद आ गया उनका उनके बेटे के लिए प्यार
पर कई सवाल मन में मेरे अब भी थे अनसुलझे
बोले जाने कैसे एक रावण पैदा हो गया मेरे घर
मान सम्मान अभिमान साथ अपने ले गया वो जर
मैंने लक्ष्मण रेखा कितनी ही खींची संस्कारों की
पाप के पुष्पक पर चला गया इज्जत की अर्थी लेकर
सुनता हूं अब जेल में सर पटक कर रोता है
बाप हूँ न सुनकर दिल में दर्द अटक कर होता है
पाप उसका ही है या मैं भी दोषी तो नहीं
कैसे कह दूँ, वही मिलता है सबको, जो बोता है
मैं उसकी माँ बहन से कहता हूं भूल जाओ उसे
मर गया वो अपने लिए मन से मारकर बहा दो उसे
पर खुद ब खुद आँखें निचुड़ उठती है मेरी
आखिर हमने ही पाल पोस कर बड़ा किया जो उसे
कई बार सोचा जेल में चला जाऊं उससे मिलने
जीते रहो ना कह पाऊंगा अब, गर लगा पैर छूने
हिम्मत टूट गई है मेरी, अब कैसे जिंदा रहूँगा मैं
बलात्कारी बेटे का बाप होना, मेरी सांसे भी कैसे कबूले
लगे सना हर लड़की का चेहरा, मेरे बेटे का ही खून है
मुझे नहीं पता, इज्जत लूटना किसी की, कैसा जुनून है
बलात्कार होकर अब मैं भी जानता हूं कैसा लगता है
नंगे बदन खड़ा हूँ जैसे, और सामने बाजार का हुजूम है
हर बच्ची के पैर धोकर पियूँ, क्या कालिख धुल पाएगी
जब हर बेटी का अपराधी हूँ, क्या माफी मिल पायेगी
मैं जानता हूं संपोला वो है तो सांप मैं भी तो हूँ
इस बलात्कारी के बाप को कैसे मुक्ति मिल पाएगी
इस बलात्कारी के बाप को कैसे मुक्ति मिल पाएगी
उनके दर्द से मैं भी पिघल गया
मेरा दिल कुछ पल के लिए जैसे गल गया
मैं बोला जो हुआ उसकी सजा एक उम्र से बड़ी है
सच में बेटा अंधेरे की गर्त में फिसल गया
पर आप चाहे तो ये पाप का बोझ कम होगा
जिस बेटी से गलत हुआ, जब उसको न्याय सुगम होगा
हर बेटी को सम्मान मिलेगा तब ही दुनिया में
जब बेटे के बापों में ध्रतराष्ट्रपना कम होगा