कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
उम्र में वो बहुत ही छोटी थी, ध्यान में उसके बस रोटी थी
ढूंढ रही थी वो खाना चारों ओर कहानी ये कर देगी
आपको भाव विभोर।
उस जान में भी एक जान थी। जो दुनिया से अनजान थी।
शालीन भाव से चल रही थी सरलता की पहचान थी।
मां की ममता में मस्त थी पर भूख से थोड़ी तरस्त थी।
भूख ले गई उसको, इंसानों की ओर
कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
था आकार बड़ा, पर शांत थी भावना तो मानो प्रशांत थी।
भूख से व्याकुल, और भ्रांत थी वो बेचारी
भविष्य की आक्रांत थी। जानवर हो कर भी इंसान थी
हैवानियत से अनजान थी। खुद चाँद थी, थी लिये चकोर
कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
भाग्य भी शायद अच्छा था। सामने एक छोटा सा बच्चा था।
देखने में सीधा सच्चा था।हाथ में फलो का गुच्छा था।
धीमे से वो सामने आया। मीठा सा फल उसे दिखाया।
देने लगी दुआएं लाखों करोड़
कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
खाते ही फल को, हो गया विस्फोट शरीर ही नहीं,
आत्मा ने भी खायी चोटविश्वास हुआ छलनी,
मन गया कचोट मूर्छित हो कर हथिनी, गई धरती पर लोट
आंखे बंद होने लगी, जलन हो रही थी तेज भूखा जीव आखिर,
कैसे करता खाने से परहेज़ आहह..कैसा ये कयामत हो रहा
घनघोर कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
भूख में धोखा खा कर, शायद पेट भर गया होगा।
फल ना सही बारूद सही, भीतर तो गया होगा।
उस राक्षसी बालक का भी, मन तो तर गया होगा।
हथिनी तो जिंदा थी पर इंसानियत जरूर मर गया होगा।
एक मां को मार कर वो कैसे अपनी मां के घर गया होगा।
हँस रहा होगा हो अहंकार में कि शर्म से भर गया होगा?
क्या इतनी हैवानियत उसके चित्त को रहा होगा मरोड़?
कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
दर्द में पागल नहीं हुई, उसने खुद को संभाला।
भागी वो नदी की ओर, पूरी ताकत लगा डाला।
जानवर हो कर भी इंसानियत दिखाती रही।
मां थी शायद इसीलिए, बच्चे को बचाती रही।
तड़पती रही दो दिन पर किसी को जताया नहीं।
बेजुबान थी शायद इसीलिए किसी को बताया नहीं।
ये दुर्घटना कर रही है मानवता को झकझोर
कहानी ये कर देगी आपको भाव विभोर।
हम इंसान हो कर भी क्यूँ जानवर बन जाते है?
क्या यही कार्य सीखने हम स्कूल जाते है?
हम भी तो तड़पते है जब चोट खाते है।
फिर क्यूँ हम बेजुबानों को यूं तड़पाते है।
प्रकृति की उदारता को हम इंसान दुरबुद्धी के
नशे में चूर, मौत की सजा सुनाते है।
इंसान बनाने वाली कुदरत भी आज इंसानों से डर रही है।
खुद इंसान के हाथों ही इंसानियत मर रही है।
प्रकृति तो आज भी मानव की झोली समृद्धि से भर रही है।
परन्तु मानव के कृत्य ही मानवता को शर्मसार कर रही है।
