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Avim Mate

Abstract

4.5  

Avim Mate

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मैं कहाँ ले जाँऊ मन मेरा

मैं कहाँ ले जाँऊ मन मेरा

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408


मैं कहाँ ले जाऊँ मन मेरा...

तुझसे बिछड़ने को तैयार नही...

मैं कहाँ ढूंढू सुकून मेरा...

तेरी यादों से मुझे निज़ात नही...

मेरी बे-चैनी को कोई देखो भी...

बताओ किस दवा की मुझे जरूरत है...

कैसे जीता हूँ मैं उसे पता नही...

मेरा ख़याल भी उसे कहाँ आता होगा...

वो ख़ुश होगी बोहत अपनी दुनिया में...

मेरे ख्वाबों की उसे कभी फ़िकर न थी... 

जब दिल लगाना था तो बात कहनी थी...

दो-चार बातें ज़्यादा की उसने मुझसे करनी थी...

शायद ही कोई होगा मुझ जैसा जिसे मिली है ये...

दर्द ही दर्द है जिस में ऐसी है हर पल की ये ज़िंदगी...

मेरे जी भर के रोने से भी नही होता ईलाज़ मेरा...

यादें कभी रुकती नही आँसू गम के थमते नही...

उसे ख़बर नही है बरसो हुए मैं उसकी याद में जीता हूँ...

शायद ही कोई समझ पाएं ये प्यार है या पागलपन या कोई भयंकर बीमारी...

ये दिमाग़ी हालात जान लो कोई बिना हँसे मुझ पर..

थोड़ी तो इज़्ज़त रखलो मेरी मैंने प्यार सच्चा किया है उस से...

बात बताओ कभी उसको मेरी...

पुछो चेहरा मेरा याद है क्या...

कोई नाम अविम सुना हो कभी...

कोई बात मुझसे कहीं हो कभी...

मेरी वो बात जिस्से आहत हुई थी वो...

वो बात मेरी याद है क्या...

वो हरक़त जो मेरी पसंद न आई नफ़रत ज्यादा जिस्से हुई...

उस मेरी हरक़त से आज भी वो आहत है क्या...

अग़र नही है दुख में वो तो मेरी आज की तकलीफ़ भी ना-जायज़ है...

वो समझेंगी नही ये बात लेक़िन वो मेरे दर्द का एक मरहम है...

उसी से मिला ये दर्द सारा वो ही तो मेरा हक़ीम है...

वो हाल पुछले मेरा तो शायद सुधर जाऊँ मैं...

मेरा नाम भी होठों पर ले ले अपने फ़िरसे ख़ुश हो जाऊँ मैं...

मेरे हाथ को ले फ़िरसे पकड़ तो ख़ुद को जिंदा पाऊँ मैं..

वो मिल ले तो ठीक हो जाऊँ मैं...

एक नए एहसास में खो जाऊँ मैं...

मेरे इंसाफ़ की मुझे तलाश है मेरा यार भी अब मेरा यार नही...

काफी दुर चला गया मुझसे मेरे दोस्त का भी मुझे अब सहारा नही...

मेरे दर्द को अब किनारा कहाँ...

बेहता रहेगा ये अब रुकेगा नही...

उसकी मुस्कान मुझे कभी याद ना आये...

देख कर ही मर जाता हूँ दिल तड़प के किधर को जाए...

बोहोत बुरे है ये साये जो मुझ पर है छाए...

किसकी लगी है नज़र मुझ पर ये...हाय

मेरे जिस्म में अब जान कहाँ...

रूह है मगर आज़ाद नही.



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