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Avim Mate

Abstract

4  

Avim Mate

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मैं कहाँ ले जाँऊ मन मेरा-कविता

मैं कहाँ ले जाँऊ मन मेरा-कविता

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मैं कहाँ ले जाऊँ मन मेरा...

तुझसे बिछड़ने को तैयार नहीं...

मैं कहाँ ढूंढूँ सुकून मेरा...

तेरी यादों से मुझे निजात नहीं...

मेरी बेचैनी को कोई देखो भी...

बताओ किस दवा की मुझे जरूरत है...

कैसे जीता हूँ मैं उसे पता नहीं...

मेरा ख़याल भी उसे कहाँ आता होगा...

वो ख़ुश होगी बहुत अपनी दुनिया में...

मेरे ख्वाबों की उसे कभी फ़िकर न थी... 

जब दिल लगाना था तो बात कहनी थी...

दो-चार बातें ज़्यादा की उसने मुझसे करनी थी...

शायद ही कोई होगा मुझ जैसा जिसे मिली है ये...

दर्द ही दर्द है जिस में ऐसी है हर पल की ये ज़िंदगी...

मेरे जी भर के रोने से भी नहीं होता इलाज मेरा...

यादें कभी रुकती नहीं आँसू गम के थमते नहीं...

उसे ख़बर नहीं है बरसो हुए मैं उसकी याद में जीता हूँ...

शायद ही कोई समझ पाएं ये प्यार है या पागलपन या कोई भयंकर बीमारी...

ये दिमागी हालात जान लो कोई बिना हँसे मुझ पर..

थोड़ी तो इज़्ज़त रख लो मेरी मैंने प्यार सच्चा किया है उस से...

बात बताओ कभी उसको मेरी...

पुछो चेहरा मेरा याद है क्या...

कोई नाम अविम सुना हो कभी...

कोई बात मुझसे कहीं हो कभी...

मेरी वो बात जिससे आहत हुई थी वो...

वो बात मेरी याद है क्या...

वो हरकत जो मेरी पसंद न आई नफ़रत ज्यादा जिससे हुई...

उस मेरी हरकत से आज भी वो आहत है क्या...

अगर नहीं है दुख में वो तो मेरी आज की तकलीफ़ भी ना-जायज़ है...

वो समझेंगी नहीं ये बात लेकिन वो मेरे दर्द का एक मरहम है...

उसी से मिला ये दर्द सारा वो ही तो मेरा हक़ीम है...

वो हाल पुछ ले मेरा तो शायद सुधर जाऊँ मैं...

मेरा नाम भी होंठों पर ले ले अपने फ़िर से ख़ुश हो जाऊँ मैं...



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