माता नदियाँ हैं सभी, वृक्ष पिता की छाँव। इनकी रक्षा सब करें, रहें शहर या गाँव।। माता नदियाँ हैं सभी, वृक्ष पिता की छाँव। इनकी रक्षा सब करें, रहें शहर या गाँव।।
जल का अभाव और जल ही जीवन। जल का अभाव और जल ही जीवन।
जनसंख्या का बढ़ना, अब भी एक बीमारी है लूट स्कूलों, हॉस्पिटलों की , अब भी क्यों जारी है दबे, उजड़े लोगो... जनसंख्या का बढ़ना, अब भी एक बीमारी है लूट स्कूलों, हॉस्पिटलों की , अब भी क्यों जा...
जाने क्या होगा भारत का हँस रही है दुनियादारी। जाने क्या होगा भारत का हँस रही है दुनियादारी।
सब चलें अपने कर्तव्य पथ पर ऐसी कविताएं करता रहूंगा। सब चलें अपने कर्तव्य पथ पर ऐसी कविताएं करता रहूंगा।
समाज का निर्माण अब कहां तय होता है, पेट को आदमी ही आदमी को तक बैठा है। समाज का निर्माण अब कहां तय होता है, पेट को आदमी ही आदमी को तक बैठा है।