बदले परिवेश - बदलता जीवन
बदले परिवेश - बदलता जीवन
हरी भरी जो दिखती थी कभी
पीली चादर ओढ़े हुए खुश्बू सी महकती थी
उगते सूरज की लालिमा से
फूलों सी खिल उठती थी।
चाँद की चांदनी जब सागर में गिरती थी
पानी की बूंदे मोती सी चमक उठती थी
फूलों की बगिया नए रंग बिखेरती थी
सुगंधित पुष्प भँवरों में नई उतेजना भरती थी।
खो गया है सब कुछ वो अब
बन्जर बन गयी धरती अपनी
जल का अभाव पेड़ों का कटाव
बन गयी है कोठिया वहां अब।
कटते पेड़ बढ़ती बीमारी
बढ़ता प्रदूषण बढ़ती महामारी
न झरने रहे न सागर सूख गयी है नदियां
प्यासी पड़ी है चिड़िया भूखी पड़ी है गैय्या।
सूखे पड़े है कुँए सारे सुनी पड़ी है पनिया
बदले परिवेश बदलता जीवन
बढ़ा मशीनीकरण घटता जीवन
कटते पेड़ मुश्किल में जीवन।
जल का अभाव और जल ही जीवन।।
