मातृ नदी
मातृ नदी
माता नदियाँ हैं सभी, वृक्ष पिता की छाँव।
इनकी रक्षा सब करें, रहें शहर या गाँव।।
मिलकर करते हैं सदा, यमुना का अपमान।
गन्दे नाले नालियाँ, बीमारी की खान ।।
गंगा मैली हो रही, धोकर सबके पाप।
मन को अपने स्वच्छ कर, हो जाएँ निष्पाप।।
तिनका-तिनका साफ कर, अपने पोखर ताल।
उसे पाटकर मत बना, बड़े महल औ माल।।
मढ़े प्रशासन के सिरे, छिपे उसी के आड़।
चना अकेला कब भला, फोड़ सके है भाड़।।
करें एक संकल्प सब, नदियाँ साक्षी मान।
कूड़ा करकट मुक्त कर, उनको दे सम्मान।।
गंगा, यमुना, नर्मदा, सबका हो उद्धार।
राप्ती,कोषी,साफ हो, ये सबके उद्गार।।