प्रीत
प्रीत
निभाकर प्रीत तुमसे ही तुम्हें दिल में बसाना है,
तुम्हारे नाम की माला कन्हैया जपते जाना है।
तिमिर ने घेर कर मुझ को अँधेरो में ढकेला ज्यों-
जलाकर दीप अंतस में किया मैने उजाला है।
सुनाऊँ हाल मैं दिल की कभी आओ तो गोकुल में,
दिखाऊँ दर्द है कितना जरा ठहरो तो गोकुल में।
तुम्हारे प्रीत की ऐसी कन्हैया लत लगी सबको-
अधूरे हैं सभी तुम बिन कि फिर से रह लो गोकुल में।।