STORYMIRROR

प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

Romance

4  

प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

Romance

"यादें"

"यादें"

1 min
278

इस बरसात

काश तुम भी होते

मैं बहाने बनाकर

यूँ ही घर से निकलती

फिर चल पड़ती

तुम्हारे हाथों में

अपना हाथ देकर

बेवजह ही मुस्कराती

और तुम मुझे देखके

खुश हो लेते।


काश कि फिर

इस बरसात हम भीगते

और फिर ठंड से कांपते

मैं अल्हड़ से अंदाज में

दुपट्टो से खुद को ढकती

और तुम मुझे एकटक देखते

फिर मेरा हाथ पकड़ते

और चल पड़ते किसी 

कॉफि शॉप में,

गरम कॉफी पीने।


काश कि फिर

मैं कॉफी मग से 

अपने हाथ सेंकती

फिर अपने गरम हाथों से

यूँ ही छूती तुम्हारे गाल

फिर तुम रख देते

अपने हाथ मेरे हाथो पर

और मैं सिहर जाती

तुम्हारे एक स्पर्श से।


काश कि वो दिन,

लौट आते एकबार

जब मैं छुड़ाकर

तुमसे अपने हाथ

यूँ ही दूर भागती

और फिर मुड़कर

बार-बार तुम्हे देखती

और तुम मुस्कराकर

इशारों में कहते कि

तुम सुधरोगी नही!

मैं देख लूँगा तुम्हे!!


हाँ!!अब भी तो

सबकुछ वैसा ही है

ये बारिश! ये रास्ते!

कुछ भी तो नही बदले

अगर कुछ बदला है 

तो हमारा प्यार

मैं और तुम

वो खूबसूरत पल

वो जीने के तरीके

तुम, तुम नही हो

और मैं, मैं नही हूँ

बस यही तो है वो यादें

जो अनायास ही 

चेहरे पर एक 

जानी-पहचानी

मुस्कान बिखेर देती हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance