लाखों दीपक वफ़ा के जलाता रहूँ
लाखों दीपक वफ़ा के जलाता रहूँ
प्रीत की बाँसुरी सा बजूँ रात दिन, प्रेम का गीत हरपल सुनाता रहूँ ।
तुम अगर साज बनकर रहो साथ में, तो गमों में भी मैं मुस्कुराता रहूँ ।।
जिंदगी चार पल की कहानी है बस, मौत रूहों के मिलने का दस्तूर है ;
एक वादा मिलन का करो हर जनम, मैं ये दस्तूर हँसकर निभाता रहूँ ।।
चाँद से चांदनी कब गयी दूर थी, इक बुरा स्वप्न था जो डराता रहा ;
आँख खोलो मैं अब भी तुम्हारा ही हूँ, तुम कहो उम्र भर ये जताता रहूँ ।।
देह हूँ और तुम मेरी' परछाई' हो, मुझसे होकर जुदा तुम कहाँ जाओगी ;
जो जुदा कर सके ऐसी हर शाम मैं, लाखों दीपक वफ़ा के जलाता रहूँ ।।
मैं दहकते हुए सूर्य का तेज हूँ, चाँद की तुम हो' शीतल सुहानी शिखा ;
मेल अपना प्रकृति का अनूठा मिलन, रस्म इसकी मैं जन्मों मनाता रहूँ ।।

