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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance

लाखों दीपक वफ़ा के जलाता रहूँ

लाखों दीपक वफ़ा के जलाता रहूँ

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प्रीत की बाँसुरी सा बजूँ रात दिन, प्रेम का गीत हरपल सुनाता रहूँ ।

तुम अगर साज बनकर रहो साथ में, तो गमों में भी मैं मुस्कुराता रहूँ ।।


जिंदगी चार पल की कहानी है बस, मौत रूहों के मिलने का दस्तूर है ;

एक वादा मिलन का करो हर जनम, मैं ये दस्तूर हँसकर निभाता रहूँ ।।


चाँद से चांदनी कब गयी दूर थी, इक बुरा स्वप्न था जो डराता रहा ;

आँख खोलो मैं अब भी तुम्हारा ही हूँ, तुम कहो उम्र भर ये जताता रहूँ ।।


देह हूँ और तुम मेरी' परछाई' हो, मुझसे होकर जुदा तुम कहाँ जाओगी ;

जो जुदा कर सके ऐसी हर शाम मैं, लाखों दीपक वफ़ा के जलाता रहूँ ।।


मैं दहकते हुए सूर्य का तेज हूँ, चाँद की तुम हो' शीतल सुहानी शिखा ;

मेल अपना प्रकृति का अनूठा मिलन, रस्म इसकी मैं जन्मों मनाता रहूँ ।।



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